Saturday, February 20, 2010

सरकारी तंत्र के तांत्रिक

शायद ही ऐसा कोई हो जिसका देश के सबसे सभ्य तंत्र यानि सरकारी दफ्तर से रूबरू न हुआ हो। एक आम आदमी की तरह मेरा भी सामना सरकारी दफ्तर के लोगो से हो गया उसके बाद मुझे क्या गुजरी ये आप के सामने है। दोपहर थी बीएसएनएल के ऑफिस में रोज़ की तरह काम हो रहा था। रोज़ सिटी की प्रॉब्लम को अख़बार की सुकिया बनाने वाला मैं अपना ब्रॉडबैंड जो दो महीने से सरकारी दफ्तरों के तांत्रिको के कोप का शिकार था उसको सही करने चला गया। सबसे पहले मेरी मुलाकात कमरे में सरकारी फ़ोन का सद उपयोग कर रहे एस डा ओ से हुई काफी देर बतियाने के बाद उन्होंने हिकारत की नज़र मुझ पर डाली। जैसे मैंने उनकी प्रेम वार्ता में खलल कर दिया हो। १५ मिनट मुझे बैठने के बाद सरकार बोले आप हेड ऑफिस जाये। मरता क्या न करता आ गया हेड ऑफिस जहाँ बीस मिनट में बारह अफसर और कर्मचारी से मेरी मुलाक़ात हो गई लकिन कोई ये नहीं बता सका मेरी प्रॉब्लम कैसे डोर होगी। आखिर थक कर मैंने लास्ट में अपना परिचय दिया फिर क्या थाजो काम दो महीने में नहीं हो पाया था वो दो मिनट में हो गया घर आ कर दाखा तू नेट चल रहा था। जिसने मुझे सोचने पैर मजबूर कर दिया की इन सरकारी दफ्तरों में देश के आम नागरिको का क्या होता होगा । सच ही है १०० में से ८० बेमान फिर भी मेरा देश महान। जय हिंद